किशोर कुमार
एसी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद के श्रीकृष्ण भावनामृत अभियान और इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) पर दुनिया के किसी भी कोने में जब-जब हमले हुए, इस्कॉन की शक्ति बढ़ती ही गई। इतिहास गवाह है कि जब-जब आसुरी शक्तियों ने दैवी शक्तियों से भिड़ने की कोशिश की, दैवी शक्तियों को ही विजय श्री की प्राप्ति हुई। चिन्मय मिशन के संस्थापक स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती ने श्रीमद्भगवतीता के भाष्य में लिखा है कि हिंदू धर्म समस्याओं से भागने को नहीं कहता, बल्कि मोर्चे पर डटे रहकर स्वयं में और अपने आसपास के संसार में विश्वास रखते हुए तथा अपनी भीतरी व बाहरी क्रूर प्रकृति के आक्रमणों पर अंतिम सफलता और विजय की आशा के साथ बुद्धिमत्तापूर्वक कर्म करने को कहता है। इस्कॉन इस कसौटी पर सौ फीसदी खरा है। तभी बंगलादेश में इस्कॉन मंदिर पर बड़े हमले के बावजूद इस्कॉन के सेवादारों के हौसले बुलंद हैं और परिस्थितियों का मजबूती से सामना कर रहे हैं।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ढाका के इस्कॉन राधाकांत मंदिर पर करीब दो सौ चरमपंथियों ने 17 मार्च रात हमला किया। तोड़फोड़ और मारपीट की गई। वैसे, इस्कॉन पर हमला कोई नई बात नहीं है। दुनिया के अनेक भागों में नाना प्रकार से इस विश्वव्यापी संस्था को बदनाम करने और उसकी जड़ें कमजोर करने की भरपूर कोशिशें की जाती रही हैं। पश्चिमी देशों में तो बीते चार-पांच सालों से मीडिया ने इस आंदोलन के विरूद्ध अभियान ही चला रखा है। पर तमाम हमलों और अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद के परलोक सिधाने के चार दशक बाद भी हरे कृष्ण, हरे राम के रूप में पूरी दुनिया में ख्यात श्रीकृष्ण भावनामृत अभियान की चमक बरकरार है। इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस (इस्कॉन) शनै-शनै ही सही, विस्तार पा रहा है। दुनिया भर के साठ से ज्यादा देशों में इस्कॉन की मजबूत उपस्थिति और अनुयायियों की संख्या में इजाफा देखकर ऐसा लगता है मानों कोई अदृश्य शक्ति सब कुछ संचालित कर रही है।
श्रील प्रभुपाद 1965 में अमेरिका गए थे। साल पूरा होते-होते अंतर्राष्ट्रीय श्रीकृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना की। इसी बैनर तले भक्तियोग आंदोलन शुरू किया। गोरे युवक-युवतियों का इस आंदोलन के प्रति बढता आकर्षण चर्च के धार्मिक नेताओं को परेशान करने लगा था। मीडिया हमलावर हो गया था। इसके बावजूद श्रील प्रभुपाद कदम-कदम पर हरे कृष्ण हरे राम…मंत्र-शक्ति व संकीर्तन की वैज्ञानिकता साबित करते हुए और तर्कों व तथ्यों के आधार पर यह बताते हुए कि कृष्ण और क्राइस्ट एक ही परमात्मा के अलग-अलग नाम हैं, आगे बढ़ते चले गए थे। उनके आंदोलन को बड़े स्तर पर ऐसी स्वीकार्यता मिली कि वह अमेरिका और यूरोप सहित साठ से ज्यादा देशों में छा गया था।
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जब अमेरिका पहुंचे थे तो उनके पक्ष में कुछ बातें थीं, जिनसे प्रकारांतर से उन्हें मदद मिली होगी। पहला तो यह कि स्वामी विवेकानंद के कारण अमेरिका की धरती भक्ति आंदोलन के लिए बंजर नहीं रह गई थी। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती का कृष्ण भक्ति साहित्य अमेरिका के पुस्तकालयों तक पहुंच चुका था। श्रील प्रभुपाद से उम्र में कोई तीन वर्ष बड़े पहमहंस योगानंद क्रियायोग का प्रचार करने 1920 में ही अमेरिका चले गए थे। यानी श्रील प्रभुपाद से 45 साल पहले। वे योग और अध्यात्म के दृष्टिकोण से उस जमीन को उर्वर बनाने के लिए बड़े पैमाने पर काम कर रहे थे। साथ ही धार्मिक अवरोधों को दूर करने के लिए लोगों के मन में बात बैठाते जा रहे थे कि श्रीमद्भगतवत गीता और बाइबिल की बातें और उनके संदेश प्रकारांतर से एक ही हैं। श्रीकृष्ण के भौतिक शरीर धारण करने के बाद की परिस्थितियां और ईशा मसीह का जीवन लगभग एक जैसा है। दूसरी तरफ साठ के दशक के प्रारंभ में ही महर्षि महेश योगी के भावातीत ध्यान का जादू अमेरिकियों पर काम करने लगा था। स्वामी सत्यानंद सरस्वती के वैज्ञानिक योग की बातें तथा नाम संकीर्तन व मंत्रयोग की महत्ता भी अमेरिका और यूरोप के लोग लोग समझने लगे थे।
अध्यात्म के दृष्टिकोण से इतनी जमीन तैयार होने के बावजदू श्रील स्वामी प्रभुपाद को विशेष राहत न थी। उन्हें धर्म परिवर्तन कराने आए संत के तौर पर देखा जाता था। सैंडी निक्सन अमेरिका के बड़े पत्रकार थे। उन्होंने स्वामी प्रभुपाद से पूछा था कि श्रीकृष्णभावनामृत और क्राइस्टभावनामृत में क्या अंतर है? कृष्ण भक्त बनकर हम समाज की बेहतर सेवा किस तरह कर सकते हैं? क्या यह अभियान जाति व्यवस्था को जागृत करने का जरिया नहीं है? महिलाओं के आध्यात्मिक जीवन के लिए इस आंदोलन में कोई जगह है या नहीं? आदि आदि। इसी तरह के सवाल अनेक पत्र-पत्रिकाओं के पत्रकार अक्सर किया करते थे।
श्रील प्रभुपाद सभी प्रश्नों के तर्कसम्मत उत्तर देते थे। वे कहते थे कि विभिन्न रूपो में कृष्ण प्रेम का तत्व सबके जीवन में पहले से मौजूद है। महामंत्र हरे कृष्ण हरे कृष्ण, हरे राम हरे राम…… श्रीकृष्णभावनामृत को जागृत कर देता है। तभी जो लोग भगवान कृष्ण से अनजान हैं, वे लोग भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण, हरे राम हरे राम अभियान को लेकर दीवाने हुए जा रहे हैं। उन्हें समझ में आ गया कि संकीर्तन विज्ञान है औऱ इससे उत्पन्न स्पंदन स्नायुओं को आराम पहुंचाता है। इससे मन का नियंत्रण और प्रबंधन होता है। रही बात क्राइस्टभावनामृत की वह भी कृष्णभावनामृत ही है। जो लोग जीसस के आदेशों का पालन नहीं करते वे कृष्णभावनामृत तक नहीं पहुंच पातें।
अमेरिका और यूरोप के युवाओं को उनके वैज्ञानिक तर्क सही मालूम पड़े और वे श्रीकृष्णभावनामृत अभियान से जुड़ते चले गए थे। पांच दशक बाद पश्चिम का कुछ मीडिया घराना इस अभियान के विरोध में मुखर हुआ है और साबित करने की कोशिश की जाती है कि श्रील प्रभुपाद महिलाओं को इस्कॉन में महती भूमिकाएं देने के पक्ष में नहीं थे। लिंगभेद के इसी सिद्धांत के कारण महिलाएं अपने को आंदोलन में उपेक्षित महसूस करती हैं, जबकि हकीकत ऐसा नहीं है। इस्कॉन की विशाखापत्तनम शाखा में निताई सेविनी माता जी गुरूत्तर भूमिका निभा रही हैं। और जगहों पर भी महिलाएं गुरूत्तर भूमिका में हैं। इसलिए मीडिया की बातें असरहीन हैं और इस्कॉन की दुनिया भर में जादू बरकरार है। ऐसे में बंगलादेश में भी हरे कृष्ण हरे राम मंत्र की शक्ति, आक्रमणों से दब जाएगी, ऐसा भ्रम पालना दिवास्वप्न ही है।
(लेखक उषाकाल के संपादक और योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)