विज्ञान के इस युग में क्या ऐसा समय आएगा कि हमारे पास ऐसी टाइम मशीन होगी कि हम अपनी उम्र घटाने-बढ़ाने में सक्षम होंगे। पौराणिक कथाओं के पात्रों की तरह तीनों लोकों की यात्रा कर सकेंगे और अतीत और भविष्य को देख पाने में सक्षम हो पाएंगे? ये सवाल बेतुके जान पड़ते हैं। पर अध्ययन और महापुरूषों के साथ सत्संग से मेरी धारणा बदलती जा रही है। लगता है कि ब्रह्मांड में जो चीजें घटित हो रही हैं, वे हमारे जीवन में आज न कल साकार जरूर होंगी। आखिर प्राचीन ऋषि-मुनियों की तरह हम भी तरंगों के जरिए बातचीत कर पाएंगे, मोबाइल फोन या वायरलेस के वजूद में आने से पहले ऐसा किसने सोचा था?
हर्बर्ट जॉर्ज वेल्स का बहुचर्चित उपन्यास “द टाइम मशीन” जब पढ़ा था तो यही समझ पाया था कि टाइम मशीन, उससे अंतरिक्ष की रोमांचक यात्रा, एक ही व्यक्ति के कई-कई युगों तक जिंदा रहने की बात आदि लेखक की कल्पना मात्र है। ऐसे में लेखक को उसकी अद्भुत कल्पना-शक्ति के लिए दाद ही दी जा सकती थी।
तभी एक दिन विज्ञान के शिक्षक ने भौतिकशास्त्र पढाते हुए समझाया कि कुछ ब्रह्मांडीय किरणें प्रकाश की गति से चलती हैं। उन्हें एक आकाशगंगा पार करने में कुछ क्षण लगते हैं। लेकिन पृथ्वी के समय के हिसाब से ये दसियों हजार वर्ष हुए। मन में मंथन फिर शुरू हो गया। मुझे लगा था कि भौतिकशास्त्र की दृष्टि से यह भले सत्य है। पर गुरू जी भी कहते हैं कि उनकी जानकारी में दुनिया में अभी तक ऐसी कोई टाइम मशीन नहीं बनी, जिससे हम अतीत या भविष्य में पहुंच सकें। लिहाजा “द टाइम मशीन” के मामले में पुरानी धारणा बन रह गई।
विश्व प्रसिद्ध बिहार योग विद्यालय के संस्थापक पूज्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती जी के संपर्क में आया तो वे कई बार वेद-पुराण और अन्य प्राचीन शास्त्रों के प्रसंगों की चर्चा करते और तथ्यों से साबित कर देतें कि ये बातें किस तरह विज्ञानसम्मत हैं। पौराणिक कथाओं के मुताबिक सनतकुमार, नारद, अश्विन कुमार आदि कई हिन्दू देवता टाइम ट्रैवल करते थे। भारतीय धर्मग्रंथों में टाइम मशीन की कल्पना की गई है।
मिसाल के तौर पर रेवत नामक राजा ब्रह्मा के पास मिलने ब्रह्मलोक गए और जब वह धरती पर पुन: लौटे तो यहां एक चार युग बीत चुके थे। कुछ ऋषि और मुनि सतयुग में भी थे, त्रेता में भी थे और द्वापर में भी। इसका यह मतलब कि क्या वे टाइम ट्रैवल करके पुन: धरती पर समय समय पर लौट आते थे। पौराणिक कथाओं से यह भी पता चलता है कि पृथ्वी पर ऐसे कई साधु-संत हुए हैं, जो आंख बंद कर अतीत और भविष्य में झांक लेते थे।
अल्बर्ट आइंस्टीन के पहले यह माना जाता था कि समय निरपेक्ष और सार्वभौम है। अर्थात सभी के लिए समान है। यानी यदि धरती पर दस बज रहे हैं तो मंगल ग्रह पर भी दस ही बज रहे होंगे। पर आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत के अनुसार ऐसा नहीं है। समय की धारणा अलग-अलग है। कुछ समय बाद ट्रेन में यात्रा करते हुए एक सहयात्री की पुस्तक पढने का मौका मिला था, जो आइंस्टीन पर था। उसमें आइंस्टीन ने कहा है कि दो घटनाओं के बीच का मापा गया समय इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें देखने वाला किस गति से जा रहा है।
मान लीजिए की दो जुड़वां भाई हैं- राम और श्याम। राम अत्यंत तीव्र गति के अंतरिक्ष यान से किसी ग्रह पर जाता है और कुछ समय बाद पृथ्वी पर लौट आता है जबकि श्याम घर पर ही रहता है। राम के लिए यह सफर हो सकता है एक वर्ष का रहा हो, लेकिन जब वह पृथ्वी पर लौटता है तो दस साल बीत चुके होते हैं। उसका भाई श्याम अब नौ वर्ष बड़ा हो चुका है, जबकि दोनों का जन्म एक ही दिन हुआ था। यानी राम दस साल भविष्य में पहुंच गया है। अब वहां पहुंचकर वह वहीं से धरती पर चल रही घटना को देखता है तो वह अतीत को देख रहा होता है।
इन तमाम प्रसंगों के बाद मुझे लगता है कि यदि आधुनिक युग में ऐसी टाइम मशीन का आविष्कार हो गया तो क्रांति हो जाएगी। मानव जहां खुद की उम्र बढ़ाने में सक्षम होगा वहीं वह भविष्य को बदलना भी सीख जाएगा। जाहिर है कि इतिहास फिर से लिखा जाएगा। इस दिशा में काम तेजी से किया जा रहा है। कुछ समय पहले ही रूस के वैज्ञानिकों ने क्वॉन्टम कंप्यूटर के जरिए टाइम रिवर्सल का डेमोंस्ट्रेशन दिया है।
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