बिहार योग विद्यालय उस सुगंधित पुष्प की तरह है, जिसकी खुशबू सर्वत्र फैल रही है। उसकी विलक्षणताओं की वजह से इंग्लैंड सहित यूरोप और अमेरिका के कई शहरों से प्रकाशित होने वाले अखबार “द गार्जियन” ने इसे पूर्व की तरह पहले स्थान पर रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर देश में योग के प्रचार-प्रसार के लिए चयनित चार योग संस्थानों में बिहार योग विद्यालय भी है। प्रधानमंत्री पुरस्कार से पहले ही सम्मानित किया जा चुका है। इस संस्थान के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है, जो भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला दूसरा उच्च नागरिक सम्मान है। प्रधानमंत्री स्वयं स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के “यौगिक कैप्सूल” की अहमियत बताते हुए देशवासियों से इसे अपनाने की अपील कर चुके हैं। उन्हें खुद के लिए भी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती की आवाज में निर्देशित योगनिद्रा योग बेहतर लगता है।
बिहार योग विद्यालय को जो जानते हैं, वे मानते हैं कि यह योग विद्या का ऑक्सफोर्ड है। वसंत पंचमी के दिन इसकी स्थापना के 61 साल पूरे हो चुके। यह जानना दिलचस्प होगा कि गुरू-शिष्य परंपरा वाला छोटा-सा गुरूकुल देखते-देखते दुनिया के एक सौ से ज्यादा देशों में किस तरह छा गया। साथ ही यह दुनिया भर में यौगिक अनुसंधानों को संचालित करने वाला महत्वपूर्ण केंद्र कैसे बन गया। इसके बाद समझना आसान होगा कि नासा को जब अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यौगिक उपचारों की जरूरत महसूस हुई तो उसे इस काम को सफलापूर्वक अंजाम देने के लिए अपने पांच सौ वैज्ञानिकों के समूह में इकलौते योगी के रूप में बिहार योग विद्यालय के परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती क्यों उपयुक्त लगे थे।
दुनिया में योग का पहला विश्व विद्यालय होने का गौरव हासिल करने वाले इस संस्थान की स्थापना बिहार के मुंगेर जैसे सुदूरवर्ती शहर में करके पूरी दुनिया में योग का डंका बजा देना मामूली काम नहीं था। पर ऋषिकेश में डिवाइन लाइफ सोसाइटी व शिवानंद आश्रम के संस्थापक तथा पेशे से चिकित्सक रहे स्वामी शिवानंद सरस्वती के शिष्य परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने अपने गुरू का आदेश पालन करने के लिए असंभव को संभव कर दिखाया। आज आलम यह है कि योग साधना की बदौलत समृद्ध, शक्तिशाली और रोगमुक्त समाज बनाने की दिशा में बिहार योग विद्यालय अपने मातृ संगठनों के सहयोग से अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुका है।
स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने 19 जनवरी 1963 को वसंत पंचमी के दिन मुंगेर में केदारनाथ गोयनका के एक भवन में योग विद्यालय का श्रीगणेश करते हुए कहा था – “योग अतीत के गर्भ में प्रसुप्त कोई कपोल-कथा नहीं है। यह वर्तमान की सर्वाधिक मूल्यवान विरासत है। यह वर्तमान युग की अनिवार्य आवश्यकता और आने वाले युग की संस्कृति है। योग विश्व की संस्कृति बनेगा।“ उन्हें यह अनुभूति विद्यालय की स्थापना के पहले विश्व भ्रमण के दौरान हुई थी। विद्यालय की स्थापना के बाद भी उनका विश्व भ्रमण जारी रहा। इससे दुनिया भर में योग के पक्ष में माहौल बना। इसी क्रम में उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि वैज्ञानिक युग में योग को विज्ञान की कसौटी पर कसे बिना जन-जन में योग की स्वीकार्यता मुश्किल काम है। उनकी अपनी भी सोच थी कि योग की वैज्ञानिक पद्धति होनी चाहिए। इसके लिए यौगिक भाषा, शब्दावली और व्याख्या विधि होनी चाहिए, जो वैज्ञानिक शोध के अनुरूप हो।
नतीजतन, उन्होंने पहले तो बिहार योग विद्यालय परिसर में रिसर्च को-आर्डिनेशन सेंटर की स्थापना की। ताकि दुनिया भर में हो रहे शोध कार्यों को संकलित करके रखा जा सके। जब योग विद्यालय का मुख्य भवन “गंगा दर्शन” गंगा के तट पर अवस्थित ऐतिहासिक कर्ण चौरा पर बना तो वहां 1984 में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए योग रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की गई। यह ट्रस्ट दुनिया के अनेक प्रतिष्ठित शोध व चिकित्सा संस्थानों के सहयोग से योग के चिकित्सकीय प्रयोग और मन के प्रबंधन पर व्यापक अनुसंधान में जुटा हुआ है। इस शोध संस्थान के बनने के पहले और बाद में भी हृदय एवं परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र, पाचन तंत्र, मूत्र एवं प्रजनन प्रणाली, मांसपेशी और अस्थि तंत्र के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय अनुसंधान किए जा चुके हैं। दमा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और गठिया जैसे रोगों पर यौगिक विधियों के प्रभावों की जांच की जा चुकी है।
साथ ही योगाभ्यास की अंत:स्रावी प्रणाली, शरीर के विभिन्न आंतरिक अंगों व गर्भवती महिलाओं पर होनेवाले प्रभावों पर अनुसंधान किया गया। हृदय रोगों पर भी योग के सकारात्मक प्रभाव देखे गए। अनुसंधान के दौरान देखा गया कि योगाभ्यासों से मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन फिर से बनने लगता है। मानसिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक विकारों में हठ योग के अभ्यासों के प्रभाव का अध्ययन किया गया। प्राणायाम का तंत्रिका तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ता है, इस विषय पर भी अनुसंधान किया गया। ध्यान, कीर्तन, जप और योग निद्रा की उपयोगिता की जांच मस्तिष्क में उत्पन्न होनेवाली अल्फा तरंगों के आधार पर की गई। इस तरह, बिहार योग विद्यालय अपने शोधों के माध्यम से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां हासिल कर चुका है।
बारह वर्षों तक ऋषिकेश में अपने गुरू के सानिध्य में रहकर कर्मयोग और वेदांत की शिक्षा लेने वाले स्वामी सत्यानंद के लिए यह काम कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा, इसका कुछ उदाहरणों से सहज अंदाज लगाया जा सकता है। जब स्वामी सत्यानंद सरस्वती यौगिक अनुसंधानों की दिशा में बढ़े तो कुछेक अनुसंधानों को छोड़कर बाकी अनुसंधानों के लिए विकसित देशों की ओर रूख करने की मजबूरी हो गई थी। वजह यह थी कि उस वक्त पूरे देश में यौगिक अनुसंधानों के लिए बुनियादी ढांचे का घोर अभाव था। पर अमेरिका जैसे देश में हर काम की भारी कीमत अदा करनी होती थी। शोध के लिए भारी भरकम रकम जुटाने के लिए स्वामी जी साल में कम से कम तीन बार अमेरिका के फ्रैंकफर्ट तक हवाई जहाज से जाते। वहां से दूर-दराज के शहरों में जाकर मोटल में रूकते। अखबारों में विज्ञापन देतें। सौ-दो सौ लोग कुंडलिनी योग या मंत्र योग के बारे में जानने आ जाते थे। उनसे मिली रकम शोध के काम आ जाती थी। इन वैज्ञानिक अनुसंधानों से साबित हुआ कि वे योग पर जो बोले थे, ठीक बोले थे।
इन अध्ययनों का एक और लाभ हुआ। बिहार योग विद्यालय परिसर में समृद्ध पुस्तकालय बन गया। अब वहां दुनिया के अनेक देशों के योग विज्ञानी स्वतंत्र रूप से यौगिक व तांत्रिक अभ्यासों के शारीरिक व मनोवैज्ञानिक प्रभावों पर अनुसंधान करने के लिए पहुंचते हैं। पुस्तकालय में स्वामी शिवानंद सरस्वती, स्वामी सत्यानंद सरस्वती और स्वामी निरंजनानंद सरस्वती के प्रवचनों और योग रिसर्च फाउंडेशन के अध्ययनों के आधार पर लिखी गई एक हजार से ज्यादा पुस्तकें हैं, जो योग पर वैज्ञानिक शोध में जुटे लोगों के लिए उत्प्रेरक का काम करती हैं। इनके अलावा दुनिया भर में हुए योग अनुसंधानों से संबंधित पुस्तकों और सामग्रियों का भी संकलन है। पुस्तकालय में योग पर वैज्ञानिक अनुसंधानों से संबंधित रिपोर्टें और नई-नई पुस्तकें जोड़ने का काम निरंतर जारी रहता है।
योग विज्ञान के क्षेत्र में बिहार योग विद्यालय की उल्लेखनीय उपलब्धियों का ही नतीजा है कि स्वामी सत्यानंद सरस्वती के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी स्वामी निरंजनानंद सरस्वती विश्व में नासा के पांच सौ वैज्ञानिकों के समूह में शामिल हैं। इस समूह के पास एक परियोजना है, जिस पर स्पेन के मैड्रिड विश्वविद्यालय में काम चल रहा है। इस परियोजना के तहत एक ऐसे यंत्र का आविष्कार किया जा रहा है, जिससे फ्रिक्वेंसी का आदान-प्रदान हो सके। स्वामी निरंजनानंद सरस्वती को यौगिक क्रियाओं के जरिए फ्रिक्वेंसी निर्माण में महती भूमिका निभानी है। उनकी अगुआई वाले योग रिसर्च फाउंडेशन को मंत्रों के जरिए इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फील्ड और फ्रिक्वेंसी निर्माण में पहले ही सफलता मिल चुका ही।
नासा की परियोजना में सफलता मिलने पर अंतरिक्ष गए यात्रियों का इलाज इलेक्ट्रो मैग्नेटिक फ्रिक्वेंसी से किया जा सकेगा। नासा में देखा गया है कि व्यक्ति के शरीर के प्रत्येक अंग की इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक फील्ड होती है। उस फील्ड की फ्रिक्वेंसी होती है। दवाओं की भी फ्रिक्वेंसी होती है। इसलिए फ्रिक्वेंसी के ट्रांसमीशन से अंतरिक्ष में पहुंचे यात्री को बीमारी से मुक्ति दिलाई जा सकेगी।
भारतीय योग विद्या को वैश्विक पहचान दिलाने वाले परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने तो 5 दिसंबर 2009 को अपनी तपोभूमि रिखियापीठ (देवघर) में महासमाधि ले ली थी। उसके बाद से परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती अपने गुरू के योग अभियान को जिस तरह आगे बढ़ा रहे हैं, उसे योग की दुनिया में महान उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है। योग विज्ञान पर विस्तृत अध्ययनों और उसके आधार पर व्यावहारिक योग विधियों के प्रतिपादन की वजह से बिहार योग विद्यालय को योग का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है।