खतरे की घंटियों की हमने अनदेखी की। अब जीवन की धाराएँ ही अवरुद्ध होने लगी हैं। जी हां, वैरिकोज वेंस के कारण देश की पच्चीस फीसदी आबादी का जीवन तबाह है। पैरों की नीली, बैंगनी या लाल हो कर सूज चुकी नसें, पैरों और घुटनों से लेकर कमर तक के दर्द जीवन में जहर घोल रहे हैं। इंडियन वेन कांग्रेस 2024 की मानें तो वैरिकोज वेंस वाले लोगों की संख्या तीस फीसदी तक हो सकती है। एलोपैथी और आयुर्वेदिक पद्धतियों में तो इसका निदान है। पर, विभिन्न शोधों से पता चला है कि वैरिकोज वेंस, जिसे अपस्फीत शिरा या वेरिकोसाइटिस भी कहते हैं, का योगोपचार भी संभव है।
आखिर यह बीमारी होती क्यों है? मुख्य रुप से वजनी शरीर और लगातार एक ही स्थिति में बैठे या खड़े रहने के कारण लंबे समय में इस बीमारी के लक्ष्ण प्रकट हो जाते हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के शोध के मुताबिक, अगर माता-पिता को वैरिकोज़ वेंस की समस्या है, तो यह भी बच्चों में वैरिकोज वेंस का कारण बन जाता है। लखनऊ स्थित प्रयाग आरोग्यम् केंद्र के प्रमोटर और योगाचार्य प्रशांत शुक्ल ने इस बीमारी से ग्रसित लगभग चालीस महिलाओं पर काम किया है। वे कहते हैं कि गर्भावस्था, मोटापा, मधुमेह, अति सक्रिय मूत्राशय और धातु रोग भी इस बीमारी की वजह बनते हैं। यह बीमारी घुटने और कमर दर्द के साथ ही कई बार दिल की बीमारी का कारण बन जाती है।
हम जानते हैं कि, पैरों से दिल तक खून पहुंचाने वाली नसें ज्यादातर समय गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ काम करती हैं। लेकिन जब नसों में अवरोध होता है तो तो उनके अंदर के वाल्व कमजोर हो जाते हैं, जिससे रक्त ऊपर न जाकर वापस पैरों की ओर प्रवाहित होने लगता है और नसों में जमा हो जाता है। जाहिर है कि इस समस्या से छुटकारा तभी मिल सकता है जब रक्त का प्रवाह ऊपर की ओर हो। चिकित्सा विज्ञान के मुताबिक, पिंडलियों की मांसपेशियां पैरों के नसों के लिए दिल की तरह काम करती हैं, इसलिए उन्हें मांसपेशी पंप भी कहा जा सकता है। उन पंपों को गतिमान बनाए रखने में खास-खास योग विधियां बड़े कारगर साबित होती हैं।
मंगलोर यूनिवर्सिटी में वैरिकोज वेंस पर योग के प्रभावों को जानने के लिए अध्ययन किया गया। कर्नाटक राज्य रिजर्व पुलिस बल (केएसआरपी) के 7वें बटालियन से प्राथमिक वैरिकोज वेंस से पीड़ित 56 पुलिस कर्मियों का चयन किया गया। उनकी उम्र 30 से 60 वर्ष के बीच थी। नब्बे दिनों तक योगाभ्यास कराए जाने से बाद शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि योग वैरिकोज वेंस की परेशानियां दूर करने में मददगार है। एक अन्य क्लीनिकल अध्ययन 35 महिलाओं पर चंडीगढ़ स्थित राजकीय योग शिक्षा एवं स्वास्थ्य महाविद्यालय में किया गया। तीन महीनों तक सप्ताह में छह दिन दो-दो घंटे तक मुख्य रुप से ताड़ासन, त्रिकोणासन, विपरीत करणी आसन, उज्जयी, नाड़ी शोधन, भस्त्रिका, भ्रामरी प्राणायाम और अँत में योगनिद्रा का अभ्यास कराया गया। साथ ही फाइबर युक्त भोजन दिए जाते रहे। इससे वेनस क्लीनिकल स्कोर में उल्लेखनीय कमी, दर्द और सूजन में कमी और समग्र शिरापरक स्वास्थ्य में सुधार पाया गया।
विद्युत अभियंता के रुप में करियर की शुरुआत करने वाले योगाचार्य प्रशांत शुक्ल खुद ही बीमारियों से जूझते हुए योग की शरण में गए थे और स्वस्थ होकर योगाचार्य बन गए। उनका अनुभव है कि वैरिकोज वेंस के नियमन के लिए योगाभ्यास के मामले में समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। जैसे, मरीज को षट्कर्म जैसे नेति, धौती, बस्ती, कपालभाति, नौली कराया जाना चाहिए। शीर्षासन को आसनों का राजा कहा गया है। यह वेरिकोज वेन ही नहीं, अन्य कई रोगों को भी हर लेने वाला है। पर, इस आसन की सीमाएं हैं। स्वास्थ्य कारणों से हर कोई नहीं कर सकता। इसके बाद तीन और आसन उपयोगी हैं, जिन्हें एक साथ करने से या उनमें से किसी एक को करने से भी बहुत हद तक लाभ मिल जाता है। जैसे, विपरीतकरणी आसन, अर्द्ध सर्वांगासान और सर्वांगासन। हां, नाड़ी शोधन प्राणयाम के साथ इन आसनों का असर दो गुना होता है। इनमें से कोई भी आसन करने की स्थिति में जो न हो उसके लिए एरियल योगा तो है ही।
बिहार योग विद्यालय के संस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सरस्वती की दुनिया की अनेक भाषाओं में अनुवादित पुस्तक “आसन प्राणायाम मुद्रा बंध” में कहा गया है कि सिर के बल किए जाने वाले आसन शरीर पर गुरुत्वाकर्षण की क्रिया को उल्टा कर देते हैं। शरीर के नीचले भाग का रक्त मस्तिष्क तक पहुंच जाता है। इसका प्रभाव भावनात्मक और अतीन्द्रिय स्तरों पर भी होता है। विपरीत करणी आसन में जब पीठ के बल लेटकर पैरों को दीवार के सहारे ऊपर किया जाता है, तो गुरुत्वाकर्षण के कारण पैरों के नसों में जमा रक्त तेजी से ऊपर हृदय की ओर बहता है। क्लीवलैंड क्लीनिक दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित और अग्रणी मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों में से एक है। चिकित्सकीय शोध, नई उपचार पद्धतियों, और क्लिनिकल ट्रायल्स के मामले में इसे अग्रणी माना जाता है। इसके चिकित्सा वैज्ञानिक भी इस निष्कर्ष पर है कि विपरीतकरणी आसन से पैरों की नसों में जमा रक्त का सर्कुलेशन में आता है और उसका सिर की ओर बहाव होने लगता है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि विपरीतकरणी आसन और अर्द्ध सर्वांगासन में से कोई एक भी नाड़ी शोधन प्राणायाम के साथ किया जाए और सुविधानुसार योग निद्रा का अभ्यास किया जाए तो वैरिकोज वेंस के कारण होने वाले कष्टों से राहत मिलेगी। वैसे बेहतर तो यही है कि समग्र योग का दृष्टिकोण अपनाया जाए और किसी योगचार्य के परामर्श से योग साधना की रुपरेखा तैयार करवाई जाए, जिसमें षट्कर्म, दो-तीन आसन, प्राणायाम और योगनिद्रा का समावेश हो। पैर ऊपर करके करने वाले किसी भी आसन को प्रयोग में लाने से पहले योगाचार्य का परामर्श अनिवार्य है। क्लीवलैंड क्लीनिक भी इस बात पर जोर देता है। इसलिए कि यदि किसी को ग्लूकोमा, किडनी या उच्च रक्तचाप की समस्या है तो उसके लिए विपरीतकरणी आसन भी लाभप्रद नहीं होता है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व योग विज्ञान विश्लेषक हैं।)