श्री अम्बाजी की आरती… ॐ जय अम्बे गौरी, मैय्या जय श्यामा गौरी…. हम सबकी जुबान पर है। पर आरती के रचयिता कौन हैं? क्या बीसवीं सदी के महान संत और ऋषिकेश स्थित डिवाइन लाइफ सोसाइटी के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती इसके रचयिता थे? जबाव है नहीं। दरअसल, गुजरात में 16वीं शताब्दी में जन्में स्वामी शिवनांद ने इस आरती की रचना की थी। इसे पहली बार सन् 1601 में देवी अम्बाजी के मंदिर में ‘यज्ञ’ की समाप्ति के उपरांत गाया गया था। यह मंदिर अंकलेश्वर के पास मांडवा बुज़र्ग गाँव स्थित मार्कंडेय ऋषि आश्रम के परिसर में है। मार्कंडेय ऋषि रचित देवी भागवत का ही एक अंश है दुर्गा सप्तशती।
स्वामी शिवानंद के पूर्वज अंकलेश्वर से ही बडनगर होते हुए सूरत के अंबाजी रोड पर घर बनाकर बस गए थे। वहीं सन् 1541 में शिवानंद वामदेव पांड्या का जन्म हुआ, जो बाद में स्वामी शिवानंद के नाम से जाने गए। आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले शिवानंद की काव्य-साहित्य में गहरी अभिरूचि थी। उनका मन नर्मदा के तट पर ही रमता था। वहीं अनेक भजनों की रचना की, जिनमें ॐ जय अम्बे गौरी… आरती भी शामिल है। पर उनकी रचनाएं पुस्तक के रूप में प्रकाशित नहीं हो सकी थीं।
नर्मदा परियोजना के मुख्य अभियंता रहे जीटी पंचीगर की इन रचनाओं पर नजर गई तो उन्होंने “स्वामी शिवानंद रचित आरती” नाम से पुस्तक प्रकाशित करवाई थी। पर स्वामी शिवानंद के भजन, आरती आदि जन-जन में वर्षों-वर्षों से रचे-बसे हैं। गरबा में भी उनके कई भजन अनिवार्य रूप से गाए जाते हैं। स्वामी शिवानंद की नौवी और दशवीं पीढ़ी के लोग आज भी गुजरात में हैं। मार्कंडेय ऋषि आश्रम की देखरेख आज भी इसी परिवार के लोग करते हैं।